डॉ. रत्नप्पा कुम्हार

डा. रत्नप्पा भारमप्पा कुम्भार स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भाग लिया. आप का जन्म एक मराठा कुम्हार परिवार में हुआ था। आप डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के साथ संविधान बनने वाली कमेटी में थे और आपने संविधान के फाईनल ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर किये थे। देश के संविधान को बनाने में आपका योगदान किसी भी स्तर से कम नहीं था, कहा जाता है कि देश के संविधान में सामाजिक समरसता और भाईचारे के बीज आपके अनुभवों की देन हैं।आपको समाज कार्य के लिए 1985 में पदम् श्री की उपाधि से नवाजा गया। आप सांसद, विधायक और मंत्री भी रहे।
आज भारत देश के पिछड़े बर्ग के लोग पिछड़े रहने का कारण समझ नहीं पा रहे हे कि क्यू पिछड़े हे देश आजाद होने के 67 बर्ष बाद भी देश की सरकारो या राजनीतिज्ञ दलो ने अभी तक पिछड़े बर्ग के बारे में क्यू नहीं सोचा ?
इन बातों के लिये पिछड़े बर्ग के लोगो या राजनीत करने बाले पिछड़े बर्ग के नेताओ को चिन्तन मनन करने की आबश्यकता हे सबसे पहले यह बात माननी होगी कि हम दलित पिछड़े बर्ग के लोग इस देश के मूल निवासी इस देश के व्यवस्थापक कभी नहीं चाहेंगे कि शूद्र (दलित पिछड़ा बर्ग )समाज के लोग खुशहाल रहे ,मान -सम्मान और स्वाभिमान का जीवन बसर कर सके ।
मित्रो इस देश की आजादी से पहले डॉ भीमराव अम्बेडकर जी और डॉ रत्नप्पा कुंभार जी ने इस बात पर शूद्र कहे जाने बाले दलित पिछडो को सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक अधिकारो को दिलाने के लिये अंग्रेज शासकों के सामने अपनी बात रखी और तब सन् 1920 में अंग्रेज सरकार् को भारत में दलित पिछडो का सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के बारे में जाँच के लिये साइमन कमीसन भेजना पड़ा और लार्ड लिथियन की अध्यक्षता में जाँच कमेटी का गठन किया गया जिसके बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर भी सदस्य बनाये गए मनुबादी / ग़ांधी बादी ने इस कमेटी का जमकर विरोध किया उस समय डॉ साहब उनके साथ घूमते थे और रात भर दलित पिछडो को समझाते थे कि इस तरह उन्होंने सभी से अनुसूची में अपने को दर्ज कराने के लिए जी भर कर प्रयास किया जो कि सामाजिक आर्थिक राजनीतिज्ञ और शैक्षिक रूप से पिछड़े हे लेकिन ग़ांधी बादियों के बहकाबे में आकर पिछडो ने अपने नाम उस अनुसूची इसलिये दर्ज नहीं कराया क्यूकि ग़ांधी और उनके सहयोगी यह समझा रहे थे कि तुम्हे अनुसूची मे इसलिय दर्ज नहीं कराना चाहिए क्यू कि तुम छोटे कहलाने लगेंगे उस अनुसूची में तो दलित अछूत और आदिवासी जातियॉ अपना नाम दर्ज करा रही हे पिछडो को डॉ आंबेडकर के कहने में नहीं आना चाहिए क्यू कि बे दलित अछूतों के नेता है पिछडो के साथ उच्च बर्ग के मनुबादी लोग (ब्रम्माण छत्रिय वैश्य )कोई भेद -भाव नहीं करते पिछड़े तो उनके चोका चूल्हा तक जाते हे (घर का पोंछा करता हे बर्तन साफ करता हे कपडे धुलाना ,पानी भरने का काम ,मिटटी के बर्तन देने का काम करना ,दूध देने का काम करना) बे पिछडो का छुआ खा पी सकते हे पिछड़े उनसे अलग कैसे माने जा सकते है ऐसे में पिछडो के लिये अलग से अधिकार दिलाना कैसे शोभा देगा ? ग़ांधीवादी बर्ग के लोग उन अधिकारो से अवगत बंचित रहे और पिछड़े है ,जो अधिकार अनुसूचित/अनुसूचित के लोगों को आजादी से पुर्व अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ही 1930 -31 में इंग्लैंड में हुए गोलमेज सम्मलेन के बाद कम्युनल एवार्ड के रूप में अधिकार देने की घोषणा हो गई जिन्हें बाद में आजादी के बाद संबिधान बनाते समय बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने संबिधान में दर्ज कर दिया और पिछडो के लिए भी ये अधिकार हासिल करने के लिए सबिधान के अनुछेद 340 में प्राबधान रख छोड़ा क़ि जब उन्हें अपने पिछड़ेपन का अहसास होगा तो बाद में बे अधिकार इन्हे मिल सके । जिस तरह अनुसूचित /अनुसूचित जन जाति के लोगो को मिलने सुरु हो गए है।
संबिधान लागू होने के बाद पिछडो को अपने अधिकार एक आयोग भी बनाकर (काका कालकेकर आयोग बनाया भी उसने अपनी रिपोर्ट भी प्रस्तुत की) उस आधार पर अधिकार मिलने शुरू हो जाना चाहिए थे लेकिन ग़ांधीवादी राजनीत दलों व् उनके नेताओ ने सोचा जो सरकार में बेठे हे कि अनुसूचित जाति / जनजाति क्र लोगो की तरह पिछडो को भी उनके अधिकार मिलने लग जायेगे तो इस तरह अनुसूचित जाति/जनजाति ,पिछड़े और इन्ही में से धर्म परिबर्तन करके सिख, मुस्लिम ,ईसाई,पारसी बने ,इन सभी बर्ग के लोगो को मिलाकर 100 %में से 85% हो जाती है यदि 100% में से 85% जगहों पर ये सब लोग छा जायेगे तो देश का लगभग सम्पूर्ण कारोवार और यहां तक कि सरकारें इन्ही की होगी तो फिर उच्च बर्ग के 15% लोग का क्या होगा जो हजारो बषो से इस देश की धन धरती कारोबार और हुकूमत पर काबिज हे इसलिये मित्रो 67 बर्ष बाद भी देश की सरकारें या राजनीतिज्ञ दल पिछडो को ये अधिकार देने व् दिलाने में नहीं सोचती है । पिछडो के अधिकारो के लिए 1990 में देशव्यापी आंदोलन सुरु हुआ और उस समय प्रधानमंत्री बी पी सिंह जी थे मंडल कमीसन लागू हुआ जिसे ग़ांधीवादी मनुबादी सरकारे लम्बे समय से पिछडो को बार बार गुमराह करने के लिये लटकाये थी इस घोषणा के बाद ऐसा कोई भी राजनीतिज्ञ दल नहीं था जिसने इसका विरोध नहीं किया जबकि यह घोषणा को 52%अधिकार मिलने चाहिए था जो सदियो से करते चले आ रहे हे उसी तरह किसी सडयंत्र के तहत कोर्ट का आदेश लाकर उसे 27% पर ही समेट कर रख दिया 52 % के स्थान पर 27%अधिकार मिले ,इसी 27%में मेडिकल और इंजीनिरिंग लाइन में इनको कितना दर्द हो रहा था की जगह जगह आंदोलन कर रहे थे जल रहे थे इस 27%का दर्द (आरक्छन) इतना बहुत लग रहा हे जबकि अभी भी इनको इस %का कुछ भी लाभ नहीं मिल रहा हे जब पिछडो को यह लाभ नहीं मिल रहा हे तो पिछडो को इन राजनैतिक दलों और उनके आकाओं पर क्यू विस्वास करना चाहिए यह सोचने की जरुरत हे क्या उनकी रहनुमाई में पिछडो को कभी लाभ मिल सकता है ये लोग पिछडो की अलग से कोई ताकत कैसे बनने दे सकते हे इसी का परिणाम हे की कथित उच्च बर्णीय लोग शासन पर अपना अधिकार जमाये बेठे हे आप हम सबका एक नेता भी होना चाहिए आपको चाहिए कि आप बस अपने अंतर्गत जात-पांत सम्बन्धी भेदभाव को भूल जाये और अपने अधिकारो के लिए एक राजनीतिज्ञ मंच पर संघठित हो जाये तो दुनिया की कोई ताकत नहीं हे की आपको सत्ता और शासन में आने से कोई रोक सके जिससे की इस देश की राजनीति एवं प्रशासनिक की मास्टर चाबी अपने हाथो में लेनी होगी । परन्तु अपनी समस्याओ का समाधान के लिये एक साथ मिलकर और भाईचारा बनाकर आगे आना पड़ेगा मित्रो इसलिए पिछडो को अपने सही नेता और उनके सच्चे हितैसी राजनीति दल की पहचान करना होगी और उनके क्रियाकलापो के बारे में समझना बहुत जरुरी हे तभी हम गुमराह होने से बच सकेंगे और सही राह पकड़कर आगे बढ़ सकेंगे और हम कामयाब होंगे ।